रेडियो: वह चेहरा जो घर को रौशन करता था
ये उन दिनों की बात है जब घर पर रेडियो चलाने के लिए भी लाइसेंस चाहिए था। इमरजेंसी लग चुकी थी, और पापा ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर गांव के बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने का निर्णय लिया. वे ग्यारहवीं और बारहवीं साल में पढ़ते थे। जब मैं बचपन में जोधपुर के कॉन्वेंट स्कूल से निकलकर गांव के निकट प्राइमरी स्कूल, कोलवा में आया था, तो मैं हर हफ्ते अपने बड़े भाई, मम्मी और पापा के साथ फिल्म देखने का मौका नहीं पाया था, और मैं बहुत कुछ साथ छोड़ गया था।
लेकिन मेरे पिता ने जोधपुर से रेडियो लाया था, वह मेरी सबसे प्यारी चीज थी। रेडियो और मैंने पूरा रविवार बिताया। एस कुमार्स का फिल्मी मुकदमा मेरा पसंदीदा कार्यक्रम बन गया था और और तभी पता ये चला कि कोई तो स्टेशन है जो अगर रेडियो पकड़ ले तो नए फिल्मी गानों से फिजा महक सकती है।
रेडियो सीलोन: नौकरी से प्यार तक का सफर
रेडियो सीलोन का सिग्नल हर दिन उसके पास रहता था क्योंकि उसने गोल पहिया को घुमाकर लाल निशान को मिमी से भी कम दूरी पर संतुलित कर लिया था। जिस दिन उनके कार्यक्रम की पहली लाइन, “बहनों और भाइयों, मैं आपका दोस्त अमीन सयानी बोल रहा हूँ!” सुनने के बाद हमें लगता था कि हमने अर्जुन की तरह नीचे पानी में देखकर ऊपर घूमते चक्र के पार टंगी मछली वेध दी है।
रेडियो सीलोन स्टेशन को फिलिप्स के रेडियो में पकड़ लेना कुछ ऐसा ही होता था। यदि रेडियो पर दो या तीन गाने होते तो सिर्फ सीलोन का सिगनल पकड़वाना होता. अगर सिगनल मिल भी जाए तो रेडियो को एक खास दिशा में साधकर बैठना भी कम चुनौती भरा नहीं होता था।
रात भर चलने वाली नौटंकियों में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर जैसे वेशभूषा धरे नर्तक-नर्तकियां स्वांग रचते, अमीन सयानी की आवाज बार-बार कानों में गूंजती थी। उसकी हर स्टेज पर बजने वाले गीतों का जिस तरह से परिचय कराना और उनके चलते उनके सुपरहिट गीतों के गीतकारों और संगीतकारों के नामों को याद करना भी बहुत अद्भुत था।
अमीन सयानी की आवाज में नया संगीत का सार्थक सफर
साल 1975 से 1976 के आसपास, मैं बिनाका गीतमाला से परिचय हुआ। उन दिनों में सिर्फ सुबह का चित्रलोक और रात का छायागीत ही फिल्मी गीतों से मनोरंजन का साधन था। लेकिन रेडियो सीलोन पर पूरी तरह से नए और निरंतर गीत बजते हैं।
अमीन सयानी की आवाज विशेष है। साथ ही, अमीन सयानी की आवाज, एक अलग ओज के साथ, विज्ञापनों में बार-बार सुनाई देती है, ऐसा लगता है कि विज्ञापन सिर्फ एक निरर्थक गीतमाला है।
एस कुमार्स का फिल्मी मुकदमा अब ही रंगीन हो गया था। लेकिन अमीन सयानी ने सेरिडॉन के साथी का पहला प्रायोजित कार्यक्रम भी शुरू किया था। अमीन सयानी की आवाज ने शालीमार सुपरलैक जोड़ी और कई अन्य कार्यक्रमों को सफल बनाया। रेडियो पर हिंदी को साहित्यिक भाषा से आम बोलचाल की भाषा बनाने का पहला उद्घोषक अमीन सयानी माना जाता है।
उनकी आवाज में हिंदी, उर्दू, फारसी और अरबी शब्द ऐसे घुल मिलते हैं कि लगता है कि अमीन सयानी हिंदुस्तान नहीं बोल रहा है। सन 60 तक, उनकी मां कुलसुम सयानी ने हिंदी, उर्दू और गुजराती में 20 साल तक एक अखबार रहबर निकाला, जिसमें अमीन सयानी ने उनका बहुत सहयोग किया।
अमीन और हमीद सयानी की कहानी
रेडियो पर अमीन सयानी के बड़े भाई हमीद सयानी का बहुत नाम है। वह अंग्रेजी में अच्छे उद्घोषक रहे। अमीन ने सिर्फ अपने बड़े भाई को अपना गुरु मान लिया। अमीन सयानी ने रेडियो पर अपना जो मुकाम बनाया, उसके किस्से सात समंदर पार तक सुने जाते हैं. उन्होंने अपने भाई से दादा और मां से भाषा सीखी। वह अपने रेडियो कार्यक्रमों को खाड़ी देशों और अमेरिका तक भेजने लगे क्योंकि उनकी विदेशी मांग बढ़ी। उनका फिल्मी सितारों के इंटरव्यू कार्यक्रम भी बीबीसी पर बहुत लोकप्रिय हुआ।
रेडियो की मेरी पहली यादों में वैसे तो मोदी के पक्षधर राही, हवामहल और कब्बन मिर्जा के छायागीत कार्यक्रम में कहना भी शामिल था, “आवाज की दुनिया के दोस्तों को कब्बन मिर्जा का आदाब”,कहना भी शामिल है। लेकिन एस कुमार्स का फिल्मी मुकदमा और बिनाका गीतमाला की हरियाली अब तक वैसी ही ताजा है जैसी कोई पचास साल पहले के अरते परते के मेरे बचपन में खिली रहती थी।
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